तुम्हारे हिसाब का कुछ हो जाये तो सुख
उसके हिसाब का कुछ हो जाये तो दुःख
दोनों के हिसाब का कुछ हो जाये
तो
एडजस्टमेंट
यानि
समझौता
और
गर तुम
अचानक कभी
चलते-फिरते
जीते-जागते
सुख-दुःख और समझौते
इन तीनों ही बिन्दुओं पर
सहमति उठाने का जोख़िम ले सको
तो ये निश्चय ही
सहनशक्ति का संगम बनेगा
और
तुम माप-तौल वाली
पक्षपाती इंसानी फिलोसोफीस से
मुक्ति पाओगे
जैसे कि
जीत-हार से
मौन-तकरार से
भीतर-बाहर से
आगे-पीछे से
ऊपर-नीचे से
जात-पात से
धर्म-कर्म से
जीवन-मरण से
और
अच्छे–बुरे से
अब आगे का रास्ता
वरदान है
अब ये
तुम्हारे होने-ना होने का नहीं
बल्कि
तुमसे जीवन के होने का जिक्र है
अब तुम्हें नहीं
बल्कि
अस्तित्व को तुम्हारी कहीं ज्यादा फ़िक्र है.
31 March 2019
Sunday, 02.27 PM
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