जिसने कुछ खोया ही ना हो
वो पाने का मजा चख भी कैसे सकेगा?
और
लाइफ़ की ये केमिस्ट्री जिसे समझ आ जाये
उल्टे-पुल्टे इस रहस्य का हल्का सा भी
क्लू मिल जाए तो
जीवन का सारा राज़ जान लिया समझो.
लाइफ़ कोई सज़ा नहीं है.
लाइफ़ में संघर्ष करते हुए भटक जाना एक
खुबसूरत पहलू है
क्योंकि इस तरह भटककर पाने का मजा ही
कुछ और है
आप सचमुच कुछ असली ही हासिल करते हैं
और सारा नकलीपन ख़ुद ब ख़ुद हवा.
आप
समंदर से एक मछली को निकाल कर देखिए
और उसे छोड़ दीजिए जमीन पर
देखिए वो कितना तड़फ जाती है.
.
उसे पहली दफा पता चलता है कि
समंदर में होने का मजा क्या था.
जब तक समंदर में थी
तब तक उसकी वैल्यू नहीं पता थी.
अब उसी मछली को वापिस समंदर में डाल दीजिए
अब उसकी दृष्टि डिफरेंट होगी
समंदर के लिए अब उसके मन में थैंक्स
होगा
वो एक स्वस्थ और अच्छे भाव से समंदर को
ताउम्र अब देख पाएगी.
अब वो जान पाई है कि समंदर का कितना
सारा उपकार है उसके ऊपर.
ये जानना ही लाइफ़ है.
असलियत है. मंजिल है.
तो अंतत इम्पोर्टेन्ट ये ही है कि पता
चल जाए कि
दुःख के बिना सुख का मज़ा नहीं?
दूर हुए बिना पास आने का मजा नहीं?
काँटों के बिना गुलाब के फूल में खुश्बू
और रस का आनंद नहीं?
रात बिना सुबह की वैल्यू नहीं?
और
मृत्यु आए ही ना तो लाइफ़ की वैल्यू फ़िर
कौन करता है?
और
लाइफ़ जीने के तरीके में कौन से ऐसे विटामिन
और मिनरल्स हों
कि जीना अधूरा ना रहे. जीना पूरा हो
जाए
मरने पर भी हँसना आ जाए तो असली जानना
हुआ
वरना पल-पल मृत्यु है.
ठीक इसी तरह
ईश्वर पहले हमें अपने पास नहीं
बुलात्ता
दूर करता है
एग्जाम लेता है
कांटे चुभाता है.
वो समंदरों का भी समंदर है
और हम मछली से भी छोटी मछलियां.
वो भी पक्का कर लेना चाहता है
कि उसकी चॉइस कहीं ग़लत ना निकल जाए.
और जब हम कभी जमीन पर पटक दिए जायेंगे
तब ही खुली आँखों से आसमां की तरफ़ देख
पायेंगे?
और सारा डिफरेंस ख़त्म.
अब आप अस्तित्व में उतर गए.
सही मायनों में ये ही जीने का तरीका
होना चाहिए
ये सब्जेक्ट्स की किताबों से बाहर का सिलेबस है.
ये महसूस करने का मसला है
और ये हर किसी को स्वयं ही करना पड़ता
है.
आज नहीं तो कल.
और इसे आप तक पहुंचना ही चाहिए.
हाँ या ना?
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