ये पहले कॉमन होने लगा था कि
आप टेस्टिंग करके देखते थे कि
क्या बेहतर
है और क्या नहीं और कैसे?
इसमें कई सारे एलिमेंट्स का योगदान होता
था
कुल मिलाकर एक लम्बी, बड़ी
और ऊबाऊ
एक्सरसाइज.
फ़िर फ़ैसला लिया जाता था कि किस और चलें.
जब से कोरोना ने पैर पसारे हैं,
सभी आप्शन में मंदी का माहौल है.
किसी भी तरफ़ निकल जाओ,
किसी से भी बात करो,
रोने-धोने और धंधा मंदा होने की बात के
अलावा
कोई दूसरी जिज्ञासा पास ही नहीं फटकती.
अब हर कोई अपने पुराने काम को
किसी भी परसेंटेज
तक लाने की जुगत में है.
कुछ अभी चुप बैठे हैं,
कुछ ने थोड़ी शुरुआत की है.
कुछ नए समीकरण बनाने की तरफ़ बढ़ रहे हैं
तो
कुछ
मंदी के एनालिसिस से ख़ुद का बोझ
हल्का
करने में लगे हैं.
यानि बाहर की आज़ादी अभी उलझन
भरे दौर में
हैं.
कोरोना का ख़तरा भी ऐसा ही है.
जब तक वेक्सीन आ नहीं जाती
और लग नहीं
जाती,
तब तक तो झुंझलाहट बनी ही रहेगी दिमाग
में.
फ़िर भी जीना तो है ही,
समय तो पास करना ही है
और इसे ख़ुशी-ख़ुशी कर लिया जाए तो
ज्यादा बेहतर.
क्योंकि आपके काम की बनावट या
आपके हालात
चाहे जैसी भी हो,
अगर आप अपने जीवन में,
हर दिन आनंदित और मस्त रह
सकते हैं,
तो यह भीतरी आजादी का संकेत है.
साफ़ है कि जिंदगी का ऊबाऊपन आपको
डगमगा नहीं सकता
और ये ही जीवन की इच्छा है.
इसे होने दें.
इमेज सोर्स:
गूगल
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